Free Hindi Book How Did We Know About Germs In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
पुरानी लैटिन भाषा में किसी छोटी चीज से बड़ी चीज (या जीव) के विकसित होने की प्रक्रिया को 'जरमन' कहा जाता था। अंग्रेजी में इसे संक्षिप्त में 'जर्म' के नाम से जाना गया।
पर इस छोटे से 'जर्म' या नन्हें से जीव का आकार क्या होगा?
शुरू में लोगों को जीवन के बारे में बस इतना पता था कि कुछ छोटे बीजों से बड़े पेड़ पैदा होते हैं। कई बार इन बीजों को देख पाना भी मुश्किल होता था। क्या जीवन का ऐसा छोटा अवयव भी हो सकता है जिसे देख पाना भी मुश्किल हो? इसके बारे में कैसे पता करें?
हां, चीजों को कुछ बड़ा करके जरूर देखा जा सकता था। पुराने जमाने में लोग इतना जानते थे कि मुड़े कांच में से चीजें देखने पर वो बड़ी दिखती थीं।
1650 के बाद से ही वैज्ञानिकों ने मुड़े कांच के टुकड़ों से छोटी चीजों को बड़ा करके देखना और उनका अध्ययन शुरू किया। कांच के इन टुकड़ों को 'लेन्स' कहा जाता था। 'लेन्स' दरअसल लैटिन के शब्द 'लेन्टिल' से आता है-और उसका मतलब होता है 'दाल' के दाने। कांच के छोटे लेन्स असल में दाल के दानों जैसे ही दिखते हैं।
लेन्स में से देखने पर छोटे-छोटे जीव बड़े दिखाई देते हैं। अब उनके शरीर के वो हिस्से भी साफतौर पर दिखाई देते जिन्हें लेन्सों के बिना देख पाना असम्भव था।
इसके लिए अक्सर एक से अधिक लेन्स उपयोग किए जाते थे। उन्हें एक धातु की नली के विपरीत छोरों पर फिट किया जाता था जिससे कि देखते समय वो अपनी स्थिति से हिलें नहीं। इस प्रकार की नली को माइक्रोस्कोप बुलाया जाता था। यूनानी में माइक्रोस्कोप का मतलब होता है 'छोटी चीजों को देख पाना'। शुरू में छोटे-छोटे जीवों को देखा गया खासकर पिस्सुओं को। इसी वजह से शुरुआती माइक्रोस्कोप 'पिस्सू कांच' के नाम से जाने गए।
शुरुआती माइक्रोस्कोप काफी खराब थे। लेन्सों का कांच अच्छा नहीं था। कांच में हवा के छोटे-छोटे बुलबुले होते और उनकी सतह भी चिकनी नहीं होती। इन लेन्सों में से देखी गई हर चीज
धुंधली नजर आती थी। और अगर ज्यादा शक्तिशाली लेन्सों से चीजों को बड़ा करके देखा जाता तो हर चीज इतनी धुंधली हो जाती कि वो दिखाई ही नहीं देती।
नेदरलैन्ड में अंतोन फॉन लेविनहुक लेन्सों की बेहतरी के काम में लगे थे। वो कोई वैज्ञानिक नहीं थे। बहुत कम पढ़े-लिखे थे। उनकी छोटी सी परचून की दुकान थी और वो अपने छोटे शहर में टाउन हॉल के सदस्य थे।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | हमने कीटाणुओं के बारे में कैसे जाना | How Did We Know About Germs |
Author: | Arvind Gupta |
Total pages: | 33 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 4.4 ~ MB |
Download Status: | Available |

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